Tripursundari Ved Gurukulam - ज्योतिष

 

भगवान् कृष्ण और ज्योतिष

            जब अधर्म की वृद्घि होती है और धर्म का हृस होता है, तब सज्जन पुरुष तड़प उठते हैं । जब दुर्जनों का अत्याचार बढ़ने लगता है, तब प्रकृति अपना सन्तुलन बनाने केलिये किसी न किसी अवतारी महापुरुष को उत्पन्न करती है।

कभी रामरूप में तो कभी कृष्णरूप में या अन्य किसी रूप में अवतारी महापुरुष को उत्पन्न करती है।

ये क्रम चारों युगों में चलता रहता है। युगों को क्या हमने देखा है, कोई भी नहीं कह सकता कि हमने चारों युगों को देखा है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो पता लगता है कि चारों युगों को सभी ने देखा है।

 

आइये समझते है—

चारों युग इसी संसार में, इसी शरीर में विद्यमान हैं, पिता सतयुग है, कुटुम्ब द्वापर है, पत्नी, भाई-बहन त्रेतायुग के रूप में हैं, और  अधर्म, मृत्यु तथा मोक्ष को प्राप्त करने का युग ही कलियुग है।

कुण्डली के देखने के बाद विदित होता है कि-लग्न, पंचम तथा नवम भाव सतयुग की मीमांसा करते हैं, तीसरा, सातवाँ और ग्यारहवाँ भाव त्रेतायुग की मीमांसा करते हैं। दूसरा, छठा और दसवाँ भाव द्वापर युग क मीमांसा करते हैं। चौथा, आठवाँ और बारहवाँ-भाव कलियुग की मीमांसा करते है।

भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ इसीलिये उन्होंने जितने भी कार्य किये हैं वे सबके सब दूसरे, छठे और दसवें भाव से संबन्धित थे।  दूसरा भाव अर्थात् परिवार से संबन्धित तो श्रीकृष्ण ने परिवार केलिये बहुत कार्य किये हैं, छठा घर अर्थात् शत्रुघर, श्रीकृष्ण शत्रुओं से पूरेजीवन घिरे रहे। 

भगवान् श्रीकृष्ण की कुण्डली में पूर्ण पुरुष-कृष्णयोगी  और पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध ने वाक्चातुर्यता और विविध कलाओं में निपुण बनाया। वहीं पर यदि दृष्टि डालेंतो जान पाएँगे कि भगवान् श्रीकृष्ण बिना किसी आयुध के मात्र वाक् चातुर्यता से कठिन से कठिन कायों का संपादन करते है। नवम भाव में उच्च के मंगल, छठेभाव में स्थित उच्च के शनि ने वीराग्रग्रण्य और पराक्रमी बनाया।

माता के स्थान में स्थित स्वगृही सूर्य ने माता-पिता से दूर रखा, सप्तमेश मंगल और लग्न में स्थित उच्च के चन्द्र ने तथा स्वगृही शुक्र्र ने गोपीगण सेवित रसिक शिरोमणि और कलाप्रेमी तथा सौन्दर्य उपासक बनाया।

लाभ घर के बृहस्पति, नवम भाव में उच्च के मंगल, छठेभाव में उच्च के स्थित शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थभाव में उच्च केसूर्य ने—महान् पुरुष, शत्रुहन्ता, तत्वज्ञ, विजयी, जननायक और अमरकीर्ति कारकबनाया।

इन्हीं ग्रहों के योगादि के कारण ज्योतिष के फलित सिद्घान्त की विशेषता बढ़ गई है।

वास्तव में ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिससे जीवन को अपने अनुरूप बनाया जा कता है। शरीर में कोई कमी है, या भाग्य में कोई कमी है या फिर जीवन में कोई कमी है तो आप ज्योतिष के माध्यम से बड़ी ही सरलता से जान सकते हैं।

पिछले लेख में चर्चा हुई थी कि ज्योतिष एक ज्योति है। वास्तव में सांसारिकप्रकाश संसारिक पदार्थों को देखने में सहयोग करता है।  जिन्हें हम इन चर्म चक्षुओं से नहीं देख पाते उन्हे देखने में ज्योतिष अपनी भूमिका निभाता है, जिसे इन आँखों से देखा नहीं जा सकता उसे हम भगवान  के ज्योतिषरूपी आँखों से देख सकते हैंऔर जान सकते हैं। शेष अगले अंक में—

आचार्य धीरेन्द्र

संस्थथापकाध्यक्ष—श्रीत्रिपुरसुन्दरी शक्ति समिति/श्रीत्रिपुरसुन्दरी वेद गुरुकुलम्

शक्तिधाम, निस्तोली कालोनी, नजदीक टीलामोड़, बाया भोपुरा-लोनीबागपत रोड साहिबाबाद (उ.प्र.)

वायुस्वरदूतः 9871662417